
एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप-परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह) की दो दिवसीय महत्वपूर्ण बैठक दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल में 23-24 जून, 2016 को संपन्न हुई। विश्व के 48 देशों के इस समूह में प्रवेश पाने की भारत की तमान कोशिशें उस वक्त नाकाम हो गई जब चीन समेत 10 देशों का विरोध भारत एवं एनएसजी के बीच ‘चीन की दीवार’ की तरह आड़े आ गया। हालांकि इस बैठक में भारत को 38 देशों का समर्थन मिला साथ ही अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस ने तो दूसरे देशों से भारत का समर्थन करने की अपील भी की लेकिन चीन की अगुवाई में स्विट्जरलैंड, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रिया, तुर्की, आयरलैंड, ब्राजील, बेल्जियम समेत दस देशों ने एनपीटी (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफिरेशन ट्रीटी-परमाणु अप्रसार संधि) को आधार बनाकर इस समूह में भारत के प्रवेश का विरोध किया। अब 2017-2018 के लिए एनएसजी की कमान स्विट्जरलैंड के हाथों में रहेगी। वह अगली बैठक की मेजबानी करेगा। अब आगामी बैठक में ही इस बात का निर्णय होगा कि भारत एनएसजी का सदस्य बनता है या नहीं। फिर भी वर्तमान वैश्विक परिदृश्य से इस बात की संभावना को काफी बल मिलता है कि भारत को सफलता अवश्य मिलेगी।
एनएसजी का गठन 20वीं सदी के आठवें दशक की एक महत्वपूर्ण घटना है। इसका गठन भारत के परमाणु परीक्षण के जवाब में भारत पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से किया गया था। मार्च 1974 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी के शासनकाल में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। इस घटना से उद्वेलित विश्व के सात प्रमुख देशों-संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, तत्कालीन सोवियत संघ, यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), जापान तथा कनाडा ने मई 1974 में एनएसजी का गठन किया था जिसकी पहली बैठक मई 1975 में हुई थी। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 48 है। एनएसजी के गठन के समय परमाणु हथियारों की होड़ को रोकना ही इसका मकसद था। लिहाजा बाद में एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) को इसका उद्देश्य बना लिया गया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि फ्रांस को छोड़कर सभी ने एनपीटी पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत ने अब तक एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

भारत का एनएसजी में शामिल होना कितना आवश्यक है यह इसी बात से समझा जा सकता
है कि भारत में दुनिया का हर छठा व्यक्ति रहता है, लेकिन दुनिया के कुल ऊर्जा उत्पादन का महज 2 से 3 फीसदी यहाँ पैदा होता है। लिहाजा, भारत के लिए ऊर्जा की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए इसे एनएसजी का सदस्य बनना बेहद जरूरी है। यदि भारत को इसकी सदस्यता मिल जाती है तो यह उस एलीट न्यूक्लियर ग्रुप में शामिल हो जाएगा जिसमें फिलहाल दुनिया के केवल 48 देश हैं। सदस्य बनने के बाद भारत परमाणु ऊर्जा से जुड़ी हर तकनीक और यूरेनियम बिना किसी समझौते के सदस्य देशों से हासिल कर सकेगा। एनएसजी के सभी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार रहता है जिसका इस्तेमाल वह नए सदस्य को ग्रुप में शामिल करने के लिए कर सकते हैं। अतः एक बार सदस्य बन जाने के बाद भारत का कद न सिर्फ एशिया में और ऊपर उठेगा बल्कि इसकी अंतर्राष्ट्रीय साख भी बढ़ेगी। देश में ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत को ज्यादा-से-ज्यादा परमाणु ऊर्जा बनाना होगा, एनएसजी का सदस्य बनने से भारत को इसमें मदद मिलेगी। इतना ही नहीं एनएसजी की सदस्यता मिलने पर भारत को परमाणु बिजली संयंत्रों के कचरे से निपटारे में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। यहां यह उल्लेखनीय है कि फ्रांस की कंपनी महाराष्ट्र के जैतापुर में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है जबकि अमेरिकी कंपनियां गुजरात और आंध्र प्रदेश में परमाणु संयंत्र लगाने की तैयारी में है।